भाई बहन की कहानी – 100 का नोट।

हिन्दी कहानी का शीर्षक – 100 का नोट। 

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अचानक से कपकपाते हाथों के साथ माथे पर चिंता की लकीर लाते हुए शेखर ने एक लंबी सांस लेते हुए पलट कर कहा “देखो! अंजली माफ करना, मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं तुम्हें राखी के दिन एक अच्छा तोहफा दे सकुँ  और मैं तुम्हें केवल ₹200 ही दे सकता हूं। मुझे बहुत अफसोस है कि तुम इतना दूर मुझसे मिलने आई लेकिन मैं….”


शेखर इससे आगे कुछ कह पाता कि  अंजली ने शेखर की बात को काटते हुए कहा  “कोई बात नहीं, वैसे भी मुझे मुंबई तो आना ही था।”

शेखर ने अंजली  की बात सुनकर अपनी नजरों को अंजली की तरफ फेरते हुए कहा 
” देखो! अंजली मुझे मालूम है कि तुम मुंबई क्यूँ आई हो और तुम्हारे काम मे कितना पैसा लग जाएगा , इस बात का जवाब तो मैं भी नहीं दे सकता। घर की परिस्थिति और हमारी आर्थिक तंगी के चलते मैं तुम्हें एक सलाह देता हूं मैं तो यहां मुंबई आ गया काम धंधे के लिए । बाकी तुम भी अगर बिना बताए मां बाबा को यह मुंबई आ गई तो वह बहुत परेशान हो रहे होंगे।”

यह सुनने के बाद अंजली ने गुस्से में कहा “मैं भी यहां घूमने नहीं आई थी। मैं यहां एक्ट्रेस बनने के लिये यहां आई हूँ, मैंने वह घर हमेशा के लिए छोड़ दिया है और मुझे तुम्हारी भी कोई जरूरत नहीं है।”

यह सुनने की बात शेखर बस अंजली को ताकते रह गया और एक बड़ा सा विराम लेते  हुए चौकते हुए उसने कहा। 

“मैं तुम्हारे सपनों की कदर करता हूं। अभी तो मैं यहां एक नौकरी की तलाश कर रहा हूं और जैसी ही मेरी नौकरी लग जाएगी। मैं तुम्हारे इस सपने को पूरा करने की कोशिश करूंगा। लेकिन अभी तुम घर चली जाओ।”


लेकिन अंजली गुस्से में अड़ी रही।उसके बाद शेखर एकदम से उठा  और अंजली के सर पर हाथ रख दिया और बड़ी मुश्किल से जाने का मन बनाया और भारी कदमों के साथ वहां से निकल गया।

इन सब के बाद अंजली के आंखों में झील आ गई थी और अपने माता पिता की तस्वीर देखने के बाद अंजली ने अपनी आंखें बंद कर ली और उसकी आंखों की झील आंखों के किनारे से बहने लगी।

उसने अपनी नजरों को दूसरी और फिरते हुए और अचानक खड़ी हुई और रेलवे स्टेशन के लिए चली गई। अंजली ने सोचा “खामखा! मैं भैया से मिली , सिर्फ ₹200 ही दिए है और ऊपर से इतना सुना दिया।” इतना सोचते हुए जैसे ही वहां स्टेशन पर पहुंचने के बाद उसने देखा कि चारों तरफ बहुत सन्नाटा है उसने अपने दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों को मोड़ कर वह एक बेजान मूर्ति की तरफ खड़ी हो गई तभी उसकी नजर दूर खड़ी एक नन्ही बच्ची पर गई।


उस नन्ही बच्ची का भूख से बेहाल चेहरा अंजली ने पढ़ लिया था। अंजली को उस नन्ही सी बच्ची पर तरस आ गया। अंजली ने अपने बह रहे आंसू को रोका और अपने पर्स से रुमाल निकाला और अपनी आंखों को साफ किया। एकाएक अंजली धीरे-धीरे कदम लेते हुए वह उस बच्ची के पास गई और उससे कहा “तुम यहां क्या कर रही हो, तुम्हारे मां बाप कहां है?” इतना सुनने के बाद बच्ची की आंखों से आंसू आ गए उसने रोते हुए कहां “भाई अकेला है, मां बाबा नहीं है।”

तभी अंजली ने सोचा “मां-बाप होना, यह बड़े सौभाग्य की बात है और जिसके पास नहीं होते हैं वहीं उनकी कीमत जान पाते हैं। मैं कितनी नादान थी जो अपने मां बाप को उनके बुढ़ापे में छोड़ आई हूं। वाकई मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।”

अंजली भावनाओं में बहते हुए उस नन्ही सी बच्ची के पास गई फटे कपड़े सूखे होंठ, पैरों पर जख्मों के निशान, नन्हा सा जिस्म, बिखरे हुए बाल जैसे ही उस बच्ची की यह हालत देखी तो अंजली का दिल पिघल गया और अंजली ने अपने भाई के ₹200 में से एक सौ का नोट निकाला और कहां 

“यह लो रख लो और कुछ खा पी लेना।” लेकिन वो बच्ची सिर्फ शून्य में ताकती रही अंजली को बड़ा आश्चर्य हुआ।

तभी उस नन्ही सी बच्ची ने कहा “भाई अकेला है वह भी भूखा हैं। दीदी! यह पैसे मुझे नहीं चाहिए, क्या आप इस रेलवे स्टेशन के थोड़ी ही दूरी पर एक  झोपड़ी है। वहीं पर मेरा भाई हैं। क्या आप यह पैसे मेरे भाई को दे सकते हैं?”

यह सुनने के बाद अंजली हैरान हो गई थी जैसे ही एक और उसकी पलके झुकी तो वह सामने का नजारा देखकर वह चौक गई सामने खड़ी वह बच्ची गायब हो चुकी थी। दूर दूर तक स्टेशन पर कोई नहीं था। अंजली को कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी देर में ट्रेन में आने वाली थी अंजली ने यह निश्चय कर दिया था कि “वह रेल में बैठकर यहां से बहुत दूर चली जाएगी।”

थोड़ी ही देर में ट्रेन आ चुकी थी जैसे ही अंजली ने ट्रेन के अंदर कदम बढ़ाने ही जा रही थी कि उसे उस बच्ची की मासूम सूरत याद आ गई और उसने अपने कदम ट्रेन से बाहर निकाल दिए और वह रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूर ही गई थी  कि उसे वह बच्ची नजर आ गई वह तेजी से भागते हुए बच्ची के पास गई। तभी हल्की सी हवा चली और जैसे ही अंजली ने फिर से अपनी पलकों को झुकाया तो फिर से वह बच्ची गायब हो चुकी थी। तभी एक नन्हा लड़का वहीं पर खड़ा था। अंजली ने वह सौ का नोट उस बच्चे के हाथों में थमा दिया और कहा “यह लो कुछ खा पी लेना।” अंजली ने आश्चर्यचकित होते हुए अंजली ने पूछा “अभी तुम्हारी बहन यहां खड़ी थी, वह कहां है?”
यह सुनते हुए उस बच्चे की आंखों में आंसू आ गए उसने रोते हुए कहा “मेरी बहन इस दुनिया में नहीं है।”

अंजली ने उस बच्चे को चुप कराया और खाने की वस्तु भी उससे खाने के लिए दे दी। लेकिन जो उस बच्चे ने कहा वह सुनकर अंजली हैरान हो गई। तभी उसने सामने देखा की वही छोटी बच्ची खड़ी थी लेकिन इस बार उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी अपने भाई को खुश देखकर वह भी खुश थी यह देखकर अंजली समझ गई भाई और बहन का इतना अमूल्य प्रेम देखकर अंजली का दिल भर आया और अंजली को एहसास हुआ कि अपने भाई के साथ दुर्व्यवहार और गुस्से में उनसे बात कर उसके अपने भाई का दिल दुखाया है। उसे इस बात का बड़ा दुख हुआ और पश्चाताप करते हुए अंजली की आंखों से आंसू टपक पड़े।

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राधा वैश्य

राधा वैश्य लखनऊ उत्तर प्रदेश से हैं। वह शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ीं हैं, और लोगों के साथ ज्ञानवर्धक जानकारी साक्षा करने में रूचि रखतीं हैं। इनके 500 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं।

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